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63/84 श्री धनुः साहस्त्रेश्वर महादेव
63/84 श्री धनुः साहस्त्रेश्वर महादेव
काफी समय पहले एक राजा थे विदूरथ। उनके दो पुत्र थे सुनीति ओर सुमति। एक बार राजा शिकार करने के लिए वन में गए। वहां उन्होने एक बडा गढ्ढा देखा, उसे आश्चर्य हुआ। तभी वहां एक तपस्वी आए ओर उन्होने बताया कि यहां से रसातल में रहने वाला कुंजभ नाम का दानव आता-जाता है। आप उसका वध करो। राजा अपने महल लौटा ओर वहां उसने आपने पुत्रों ओर मंत्रियों से विचार विमर्श किया। कुछ दिन बाद कुंजभ ने वहां आश्रम से एक मुनि कन्या मुदावति का हरण कर लिया। राजा ने क्रोध में आकर अपने दोनो पुत्रों ओर सेना को आदेश दिया कि वह कुंजभ का वध कर दे। राजा की सेना ओर उसके पुत्रों ने कुंजभ से युद्ध शुरू कर दिया। अमोध मूसल के कारण कुंजभ ने सेना का नाश कर दिया ओर राजा के दोनो पुत्रों को बंदी बना लिया। राजा को पता चला तो वह दुखी हो गया। इसी दौरान वहां मार्कण्डेय मुनि आए ओर राजा से कहा कि आप महाकाल वन में जाओ ओर वहां रूपेश्वर महादेव के दक्षिण में स्थित शिवलिंग का पूजन करों। उनसे तुम्हे धनुष प्राप्त होगा, जिससे तुम कुंजभ का नाश कर सकोगे। राजा तुरंत आवंतिकानगरी में महाकाल वन में पंहुचा ओर यहां उसने शिवलिंग का पूजन किया। यहां भगवान शिव ने उसे एक धनुष प्रदान किया । राजा धनुष ओर सेना के साथ युद्ध करने के लिए पहुंच गया। तीन दिन तक युद्ध चलता रहा ओर राजा ने धनुष के बल पर कुंजभ का वध कर दिया ओर कन्या ओर पुत्रों के साथ अपने राज्य लौट आया। राजा ने शिवलिंग से धनुष प्राप्त किया था इस कारण शिवलिंग धनुसहस्त्रेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य शिवलिंग के दर्शन कर पूजन करता है उसके शत्रुओं का नाश होता है ओर उसे नरक मे वास नहीं करना पड़ता है।